ये बारिश इश्क और तुम....

     


ये बारिश इश्क और तुम....

  मुझ पता है तुम्हे बारिश पसंद नही |

लेकिन हम पहली बार इसी बारिश में तो मिले थे |

तुम बारिश में बचती बचाती ना जाने किधार से दाओरी चली आई थी|

सच कहूं तो मुझे तुमसे उसी दिन प्यार हो गया था|

पर ऐसा भी नही था की में तुमसे ज्यादा खूब सूरत नही देखी थी|

 देखी है पर तुझमें कुछ और खास बात थी| उस भरे हुऐ बस स्टाप पर भीगे कपड़ो में तुम किसी अपशारा से कम नही लग रही थीं|

मैं उस बस स्टाप के एक कोने में बैठ कर एक टाक तुम्हे ही देख रहा था|

याद है कैसे तुमने मुझे देखते हुए पकड़ लिया था |और मैं डर के वहा से उठ गया था|

और तुमने हमे देख कर धीरे से मुस्कुरा दी थी| वो मुस्कुरहा मुझे आज भी याद है|

मैं घबरा कर दूसरी तरफ देखने का नाटक करने लगा था|

मुझे समझ nhi आ रहा था की मैं क्या करूं ,

तभी अचनाक तुमने अपना हाथ बढ़ते हुए hii मेरा नाम कोसल्या बोला था।

और मैं डरते हुए इतना ही बोल पाया था। जी,

और तुमने फिर हमसे कहा मेरा नाम कोसल्या है।

और फिर मैं अपने आपको सम्हालते हुए कहा मेरा नाम कुलदीप है।और अप बहुत खूब सूरत है इतना कहने ही वाला था ।की इतने में तुम्हारी बस आ गए थी।

कल इसी वक्त मिलना मैने जोर से बोला था लेकिन तुमने पीछे मुड़ कर नहीं देखा और तुम चाली गए । पता है उस रात मुझे नींद नहीं आई क्योंकि आंखे बंद करते ही तुम्हारा मुस्क्रता चहेरा सामने आ जाता था।


अगले दिन मैं टाइम से पहले आकार तुम्हारा इंतजार कर रहा था।

याद है बस तुम्हारी एक झलक पाने के लिए मैंने F9 की 4 बस मिस कर दिया था।

उस दिन मौसम सुहाना था बदल गरज रहे थे बारिश बस होने ही वाली थी।

मैं अपना छाता लेकर तैयार थी की आज मैं कैसे भी तुम्हे भीगने नही दू गा।

आज मेरे दिल मैं अलग सी बैचेनी थी।एक अलग सी घबराहट थी।

मैंने पहले कभी ऐसा महसूस नही किया था।

सायद मुझे तुमसे प्यार हो गया था। कुछ देर मैं बारिश होने लगी। और मैं वही पर खड़ मेरी आंखे इस बस स्टाप की भीड़ मैं तुम्हे ढूंढ रही थीं।

पर तुम नजर नही आए।

आखिरकार मैं थक हार कर मैं अपनी बस का इंतजार करने लगा।

कुछ देर में मेरी बस भी आ गए पर तुम नही आए।

मैं निराश होकर बस मैं बैठ गया । 

जब थोरी देर मैं मेरी बस चली तो मैने एक अखरी बार पीछे मुड़ कर देखा पर तुम मुझे नही दिखी।

मेघालय की वादियों में तुम्हारा अक्स कही गुम सा गया था।

मैं तुम्हे जनता भी नही था पर न जाने क्यों एक आरसो पुराना रिश्ता सा लगा था।

मैं हर रोज ऑफिस के बाद शाम को कुछ देर उस बस पर तुम्हारा इंतजार करता था।

मुझे उम्मीद थी की आज नही तो कल तुम जरूर मिलोगी। पर अफसोस तुम मुझे फिर भी नही मिली ।

देखते ही देखते 2महिने निकल गए पर तुम मुझे दुबारा उस बस स्टाप पर कभी नही दिखी।

मैने हर कर तुमसे मिलने की आस ही छोर दी ।

जब कभी भी बारिश होती मुझे इत्तिफक से हुई वो मुलाकात याद आ जाती।

मैं जरा सा मुस्कुरात पर फिर अपनी किस्मत को कोसता हुआ अपने काम मैं लग जाता था।



part 1




क्या कोसल्या और कुलदीप दुबार मिल पाए गै

क्या कोसल्या भी कुलदीप से प्यार करते थी।

जानने के लिए visit करते रहे part 2 आने तक 
















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