छलावा
रात 2 बजे का सफरभूल कर भी नहीं जाना इसस
यह कहानी तब की है जब मेरे गांव में लाइट नहीं हुआ करती थी। लोग घरों में उजाला करने के लिए लालटेन और मोमबत्ती का इस्तेमाल किया करते थे। खेत खलियान जाने के लिए टॉर्च का इस्तेमाल किया करते थे।
घर की दीवारें मिट्टी की और छत घास फूस के छप्पर से बने होते थे ।उस जमाने में सुविधा तो कम थी लेकिन खुशियां बहुत ज्यादा हुआ करती थी ।
ये कहानी जो मेरे साथ घटी है बरसात के मौसम में घटी हुई थी एक दिन की बात है उस दिन सारा दिन घनघोर बारिश होने के बाद शाम को 6:00 बजे मैं घर से बाहर निकाला मैंने देखा आसमान में तो अभी भी काले बादल छाए हुए थे। बारिश अभी भी निकलने की कोई उम्मीद नहीं थी। लोग अपने घरों से भी नहीं निकल रहे थे। क्योंकि बरसात का दिन था हर तरफ पानी ही पानी भरा हुआ था।
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क्या होगा अगर हम नाले मे कूद जाए तो
मैं अपने घर में वापस गया और खाना पकाया खाया और सो गया लेकिन अचानक रात में मेरे पेट में गुड़ गुड होने की वजह से मेरी नींद खुल गई मैंने अपनी लालटेन जलाई और घड़ी देखा तो रात के 11:30हो रहे थे।
मुझे पैखाना लगा हुआ था मैं अपने घर से बाहर निकाला और आसमान में देखा तो बारिश तो निकल गई थी लेकिन फिर भी अभी हल्की-हल्की बारिश के झीसे पढ़ रही थी चांदनी कहीं देख रही थी तो कहीं-कहीं नहीं दिख रही थी।
चंद्रमा की आ रही रोशनी को कभी-कभी काले बादल धक लेते तो कभी-कभी चांदनी अपना पूरा रोशनी पूरे गांव पर डाल देती थी। उस समय लोगों के घरों में लेट्रिंग नहीं हुआ करता थी। तो पैखने के लिए लोग गांव से बाहर ही जाया करते थे।
तो मैं अपने हाथों में टॉर्च लिया और दूसरे हाथों में लोटे में पानी लिया और गांव से बाहर की ओर चला गया गांव के बाहर एक मिट्टी का छोटा सा पहाड़ था। लोग अक्सर पैखाने के लिए उधर ही जाया करते थे।
तो मैं भी गया और आराम से पैखाना करने के बाद में वापस घर आ रहा था मेरे गांव से और बाहर की तरफ एक कच्ची सड़क बनी हुई थी उसी के बगल एक नाला निकला हुआ था। जो गांव के बरसात का पानी इस नाले से बाहर एक झील में जाया करता था।
क्या सछ मे नाले मे मछलिया आए थी
इस रोड से मैं अपने घर को आ रहा था तभी मुझे पंचक से मारने की आवाज नाले से आई।
मुझे लगा शायद कोई बड़ी मछली नाले में आ गई है।
मैं झड़ से उस तरफ टॉर्च मारी लेकिन उधर कुछ नहीं दिखा बरसात काम हो रही थी तो नाले में पानी भी थोड़ा-थोड़ा आ रहा था।
मैं उसमें टॉर्च मार कर देख ही रहा था कि तभी मुझे पीछे से फचक से मारने की आवाज आई है मैंने झट से उधर जाकर टॉर्च मेरी लेकिन उधर भी कुछ नहीं था।
मैं उधर देख रहा था कि तभी मेरे पीछे से फचक से मारने की आवाज आई मुझे लगा की बहुत सारी मछलियां इस नाले में आ गई है।
अक्सर ऐसा होता है कि जब बहुत ज्यादा बारिश होती है तो गांव की ओर से पानी तालाब को जाता है तो तालाब की मछलियां गांव की तरफ वापस आ जाती है।
आखिर मछलिया मेरे हाथों मे क्यू नहीं आ रही थी
मुझे ऐसा ही लगा था मैंने अपने पजामा को ऊपर किया और टॉर्च को वहीं जमीन पर रखकर मैं नाले में घुस गया मछलियां पकड़ने के लिए ।मैं मछलियों को हाथ डालकर पड़ रहा था लेकिन कोई मछली मेरे हाथों में नहीं आ रही थी। हलके हलके पानी मैं अपना हाथ डालकर मछलियों को ढूंढ रहा था। लेकिन फिर भी मेरे हाथ में कोई मछली अभी तक नहीं आई मैं।
जहां पर मेरा हाथ था उसी से थोड़ी ही दूर पर ऐसा लगता है कोई बड़ी सी मछली फचाक से मार के उसी में बैठ गई हो और वहां पर जब मैं हाथ डालता तो वहां पर कुछ नहीं होता था ।
ऐसे करते-करते लगभग एक डेढ़ घंटे का समय निकल गया लेकिन अभी भी मेरे हाथों में कोई मछली नहीं आई आखिर तक हर कर मैं बाहर सड़क पर बैठ गया।अब मेरे मन में एक बात का खटका बैठ गया था।कि आखिर इतनी सारी मछलियां होने के बावजूद भी मेरे हाथों में मछलियां क्यों नहीं आ रही।
मैं क्यों पकड़ नहीं पा रहा।मैं थक कर मैं वापस घर आ गया और यही बात को मैं सोच रहा था सुबह होते-होते मैं बीमार हो गया मेरा शरीर बुखार से तप रहा था। सुबह 9:00 बजे मां ने डॉक्टर बुलाया और मुझे दवाइयां दिलाए मैं दवाइयां खाया थोड़ी देर आराम रहता उसके बाद फिर वही मेरा हाल हो जाता बुखार से शरीर ताप रहा होता और दर्द होता।
मे छलावे मे आ गया हूँ ये बात ममी को समझ मे आ गए
ऐसे ही एक हफ्ते तक बीमार रहा रोज में डॉक्टर के पास जाता है और दवाइयां लेता कुछ देर आराम रहता फिर मैं बीमार हो जाता था।
एक दिन ऐसे ही मैं मां के पास बैठा हुआ था मैंने मछली वाली बात मैंने मां को बताई मम्मी को यह बात समझ में आ गई वह तुरंत ही बगल वाले गांव में एक बहुत पुराना मंदिर था। और उसमें साधु भी काफी पुराने थे ये बात मेरी मम्मी ने साधु से बताई मेरी हालत इतनी नाजुक थी कि मैं मंदिर तक नहीं जा सकता था तो साधु मेरे घर तक आए थे ।
और मुझे देखकर हंसने लगे और बोले कि कोई मछली मिली।
मैं साधु का मुंह देखा और मुझे लगा कि शायद ये मछली वाली बात बना से मम्मी ने बताई होगी ।
बाबा को मछली वाली बात कैसे पता
बना ने कुछ मंत्र पढ़कर मेरे ऊपर फूका और एक ताबीज बनाकर दिया
बना ने मम्मी से बताया कि इसके ऊपर एक छलावा हुआ है। जो एक चुड़ैल ने किया था मैंने ताबीज बना कर दे दी है यह पहन के रखना चुड़ैल तुम्हारा कुछ नहीं कर पाए गई ।
उस दिन से मैं धीरे-धीरे ठीक हो गया मम्मी से मैंने पूछा की मम्मी यह छलावा क्या होता है तो उन्होंने बताया कि की पास के झील में एक धोबिन कपड़ा धोया करती थी कुछ लोगों ने उसके साथ गलत काम किया और उसको वहीं पर मार दिया तब से वह लोगों को परेशान करती रहती है।
छलावा यह होता है जैसे तुम्हे कोई चीज देखे गई लेकिन वो होगी नही तुम उसे सुन सकते हो लेकिन देख नही सकते|
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