डरावनी राते
यह कहानी तब की है जब मोबाइल फोन नहीं हुआ करते थे।मैं घर से दूर शहर में हॉस्टल से पढ़ाई किया करता था। एक दिन मैं बहुत खुश था।
क्योंकि मैं 3 साल बाद अपने घर जाने वाला था। मैंने दोपहर से ही अपनी पैकिंग करना सुरु कर दिया था। क्योंकि 4:00 बजे कि मेरी बस थी गांव के लिए।
मैं पैकिंग किया और 3:30 बजे हॉस्टल से बाहर निकल गए मैं बस स्टॉप पर देखे तो बस मेरी पहले से ही आकर लगी थी।
मैं जाकर बस के पीछे वाली सीट पर बैठ गया थोड़ी देर बाद मेरी बस वहां से निकल पड़ी।
सर्दियों का मौसम था तो सवारी भी ज्यादा नहीं थी ।
सभी ने अपनी अपनी खिड़की बंद करके बैठ हुए थे ।
बस काफी रफ्तार मंजिल की तरफ चलती जा रही थी।
7:00 बजे सर्दियों में ऐसा लगता है जैसे 10:00 बजे की रात हो ।
बस मंजिल की तरफ बढ़ती जा रही थी ।
लेकिन हमें बहुत लंबा सफर करना था जैसे जैसे मंजिल करीब आ रही थी वैसे वैसे सांवरिया कम होती जा रही थी।
एका दुका सवारी उतरती जा रही थी ।अब धीरे-धीरे मेरी मंजिल भी करीब आने लगी थी।
लगभग 10:30 का समय हो रहा सभी अचानक से बस बंद हो जाती है।
मुझे लगा शायद कोई बस स्टॉप है तो कंडक्टर ने बस रूकवाई है। लेकिन बार-बार बस स्टार्ट करने पर स्टार्ट जब नहीं हो रही थी तो मुझे लगा शायद बस में कुछ प्रॉब्लम आ गई है।
मैंने कंडक्टर से पूछा भैया क्या हुआ बस खराब हो गई क्या तो उसने कहा मैं नीचे उतर कर देता हूं बस स्टार्ट क्यू नहीं हो रही शायद कुछ प्रॉब्लम है।
कंडक्टर ने जब बस का बोनट खोला तो उसमें से धुआं निकल रहे थे कंडक्टर ने सभी लोगों से कहा की बस के इंजन में प्रॉब्लम है अब यह स्टार्ट नहीं होगा तो प्लीज आप लोग दूसरी सवारी पकड़ कर चले जाओ बस स्टार्ट होने में समय लगेगा ।
ज्यादा सवारी नहीं थी एका दुका सवारी थी वो लोग बस से निकाल के अपने-अपने घर की ओर जाने लगे
मैं भी बस से निकाला और अपने घर की तरफ जाने लगा लेकिन मेरा घर अभी यहां से लगभग 10 किलोमीटर दूर था और मैं घर आते वक्त मैं अपने घर वालों को एक चिट्ठी लेकर लिखकर बता दिया था कि मैं इस दिन आऊंगा।
मुझे ज्यादा रास्तों का भी पता नहीं था लेकिन मुझे इतना पता था कि इधर ही चलने से मेरा घर आएगा । उन सुनसान अंधेरी रातों में दूर-दूर तक कुछ नहीं दिख रहा था। लेकिन फिर भी हम उसी रास्ते पर चले जा रहे थे।
मुझे थोड़ा-थोड़ा डर भी लग रहा था लेकिन फिर भी मजबूरी थी घर जाने की मैं सीधा अपने घर की तरफ ही जा रहा था।
कुछ दूर चलने के बाद मुझे ऐसा लगा जैसे किसी ने मेरे कंधे पर हाथ रख दिया हो।
मैं डर गया और झट से पीछे की ओर देखा।मैंने देखा पीछे एक आदमी खड़ा था मैंने उससे पूछा हां भाई क्या हुआ।
तो उसने कहा आप बंधुआ जा रहे हैं ना।
मैंने कहा। तो उसने कहा हमको भी वही जाना है अब मुझे साथ चलने वाला एक साथी lमिल गया।
मुझे थोड़ा अच्छा लगा मैं उसके साथ ही चल रहा था। मैंने उससे पूछा बंधुआ में आप कहां जाएंगे तो उसने कहा शमशान घाट।
उसकी बातें मुझे अजीब लग रही थी।
लेकिन फिर भी मैं ज्यादा ध्यान नहीं दिया उसके साथ चलता रहा।
लेकिन वह जब मेरे साथ चल रहा था तो उसकी अजीब सी चाल थी।
उसके हाथ और पांव धीरे-धीरे चल रहे थे लेकिन वह मुझसे ज्यादा तेजी स्पीड में चल रहा था।
मैं उसके साथ उसकी बराबरी करने के लिए मुझे जोर-जोर से चलना पड़ रहा था। चलते-चलते काफी दूर चलने के बाद वह अचानक सड़क पर रुक गया। तो मैंने उससे पूछा कि चलो क्या हुआ रुक क्यों गए ।
तो उसने कहा आप जाओ मेरा श्मशान घाट आ गया है।
मैं अपनी दाहिनी तरफ देखा तो वाकई में एक शमशान घाट था। क्योंकि वहां शमशान घाट में जलती हुई चिता की हल्की हल्की आग दूर से ही दिख रही थी।
देखकर मेरे शरीर के रोए खड़े हो गए क्योंकि मैं शमशान घाट को पहली बार देख रहा था।
मैंने सिर्फ फिल्मों में देखा था। मैंने कहा ठीक है फिर मैं चलता हूं।
उनका ठीक है मैं वहां से चल पड़ा दो से चार कदम आगे ही गया था।की मेरे दिल ने अचानक कहा कि मैं एक बार पीछे मोड कर देख लूं ।
जैसे में पीछे मुड़कर देखा तो ।
मेरे हाथ पाव जाम गए। जो आदमी अभी मेरे साथ चल रहा था । वो एकदम से ना जाने कहा गायब हो गया था। में डर गया था मैंने तुरंत पीछे मुद्दा और मैं अपने घर की तरफ भागने लगा। काफी दूर भगाने के बाद मैंने देखा कि एक आदमी बीच सड़क पर खड़ा हुआ है।
में उस आदमी के पास जाने से डर लग रहा था लेकिन फिर भी मैंने हिम्मत करके धीरे-धीरे उसके पास के उसके पास गया ।मैंने देखा वह आदमी कोई और नहीं मेरे दादाजी थे ।मैंने उन्हे देखते ही मेरी जान में जान आई।
में दादा जी से कहा आप यहां कैसे तो दादा जी ने बताया कि मैं तुझे ही लेने आ रहा था। मैंने देखा देर हो रही है मैं तुम्हें लेने के लिए यहां हूं।
मैं दादा के साथ अब घर चलने लगा लेकिन मेरे मन में एक बात खटक रही थी। दादाजी को कैसे पता कि मैं यहां पर हूं । फिर भी मैंने उनसे ज्यादा सवाल नहीं किया और घर चला गया अब मैं गांव के पास पहुंच चुका था गांव से थोड़ी ही दूर पर दादाजी ने हमसे कहा कि बेटा ऐसा करो तुम घर जाओ मैं थोड़ा काम करके आता हूं।
मैंने दादा जी से कहा दादा जी काम सुबह कर लेना आप घर चलो लेकिन उन्होंने कहा नहीं तुम चलो मैं 2 मिनट में आता हूं ।
दादाजी दूसरे रास्ते पर चले गए और मैं घर पर चला गया घर में आते ही मैंने देखा कि कुछ लोग मेरे घर के सामने बैठे हुए थे ।
और घर के अंदर से मां की रोने की आवाज आ रही थी।
मेरा दिल जोर जोर से धड़कने लगा मैं दौड़ता हुआ घर के अंदर में गया तो मैंने देखा कि घर में एक अर्थी सजी हुई थी। मैंने कपड़े को हटाकर देखा तो कोई और नहीं मेरे दादाजी की अर्थी थी।
जो रास्ते में मिले थे वह मेरे दादाजी नहीं उनकी आत्मा थी।वो मुझे लेने के लिए आए थे और हमे देखने के मिलने के लिए आए थे।
दादाजी मुझसे कितना प्यार करते थे यह सोचकर मेरी आंखों में आंसू आ गए और मैं भी रोने लगा।।
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