मुझे पता है तुम्हे बारिश पसंद नही |
लेकिन हम पहली बार इसी बारिश में तो मिले थे |
तुम बारिश में बचती बचाती ना जाने किधार से दाओरी चली आई थी|
सच कहूं तो मुझे तुमसे उसी दिन प्यार हो गया था|
पर ऐसा भी नही था की में तुमसे ज्यादा खूब सूरत नही देखी थी|
देखी है पर तुझमें कुछ और खास बात थी| उस भरे हुऐ बस स्टाप पर भीगे कपड़ो में तुम किसी अपशारा से कम नही लग रही थीं|
मैं उस बस स्टाप के एक कोने में बैठ कर एक टाक तुम्हे ही देख रहा था|
याद है कैसे तुमने मुझे देखते हुए पकड़ लिया था |और मैं डर के वहा से उठ गया था|
और तुमने हमे देख कर धीरे से मुस्कुरा दी थी| वो मुस्कुरहा मुझे आज भी याद है।
ये बारिश इश्क और तुम,diltutaa. Com
यह कहानी का पांचवा पाठ है इस कहानी को पूरा पढ़ने के लिए पार्ट 1 से स्टार्ट करें तब आपको पूरी कहानी समझ में आएगी
Part1 ये बारिश इश्क और तुम।
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Part2 ये बारिश इश्क और तुम।
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Part3 ये बारिश इश्क और तुम।
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Part4
यह से स्टार्ट होता है..
मुझे 2 दिन लग गए थे । मेघालय से दिल्ली पहुंचने मैं।दिल्ली बहुत बड़ा सहर है । यह ऊंची ऊंची इमारतें और चौड़ी सड़क है। ये रौशनी से भरा रहने वाला शहर है।
जब पहली बार दिल्ली रेलवे स्टेशन बाहर निकला तो टैक्सी वाले ने पूंछा की कहा जाना है।में पूरी तरह से दिशाहीन हो गया था।और दिल्ली मैं मेरा कोई था भी नही ।
में अब कहा जाऊं । तब जा कर समझ आया की कोसल्या को ढूंढन आसान नही है।
मैं स्टेशन के पास एक होटल में रूम लेकर वही रुक गया।मैं अगले दिन से ही कोसल्या को ढूंढने लगा।
में हर एक दफ्तर हर एक बिल्डिंग में जाकर कोसल्या के बारे में पूछताछ करने लगा। कई लोगो ने हमे भगाया तो कई लोगो ने मेरे हाथ बहुत ही बुरा किया।
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अब मुझे दिल्ली आए 2 महीने से ज्यादा हो गया था।अब मुझे एक आश्रम में पन्हा लेना पड़ा।
क्यों की अब मेरे सारे पैसे खतम हो चुके थे। अब होटल में रहना मेरे लिए बहुत मुस्किल हो गया था।
में अक्सर गुरुदारे खाना खाने के लिए जाने लगा था। अब मेरे बॉस ने नोकरी से भी निकल दिया था।
ये कैसी इश्क की महफिल थी,
जहा सिर्फ एक दीवाना था,
एक रोज मिलो तुम मुझे,
कितना चाहता हूं तुझे ये बताना था,
अक्सर छोटे सहारो के लोग अच्छे होते है।वह एक दूसरे की मदत करते हैं।में हर रोज कोसल्या की दोस्त को फोन किया करता था।लेकिन उसको भी कोसल्या की कोई खबर नही मिली थी। अब धीरे धीरे उसने भी मेरा फोन उठाना बंद कर दिया।अगले कुछ महीनों तक मैने दिल्ली के लगभग सभी जगह पर कोसल्या को ढूंढने की कोसीस की ।
मई का महीना था दिल्ली की गर्मी पूरे चरम पर थी। में मालविये नगर के कुछ दफ्तर में पूछताछ कर रहा था । तभी अचानक सिर चकरा नीचे जमीन में गिर पड़ा ।कुछ देर बाद जा होस आया तो में एक दफ्तर में था।
शायद खाली पेट रहने की वजह से बेहोस हो कर गिर पड़ा था।
उन लोगो ने हमे पानी पिलाया और मेरा नाम पूछने लगे।लेकिन में नाम बताने के बजाए में कोसल्या को ढूंढने लगा उसके बारे में पूछने लगा। शायद में सच में पागल हो गया था।
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दिल्ली में बहुत कम बारिश होती हैं। हमे अपने शहर की वो बारिश बहुत याद आती हैं।लेकिन जब भी बारिश होती कोसल्या बहुत याद आती और में मायूस हो जाता तब में अपनी आंखे बंद कोसल्य को महसूस करने लग जाता।
कई बारिश बीत गए पर तुम ना मिली,
कई राते बीत गया पर तुम ना मिली,
अब मिलो तो तुझसे लिपट जाना,
क्या पता फिर हम मिले या न मिले।
मेने दिल्ली हर एक दफ्तर में पता कर लिया था। लेकिन मेरी कोसल्या नही मिली । अब मेरी उम्मीद भी हारने लगी थी ।मेरे a/c में कुल 3500 रू बचे रह थे ।
में थक हार कर दिल्ली में एक नोकरी ढूंढने लगा फिर एक दफ्तर में मेरी job लग गए में जानबूझ कर नाइट सिफ्ट लिया।
में9:00 से 2बजे तक में अपनी कोसल्या को ढूंढता और 2 बजे से रात 10:00 कॉल सेंटर में काम करता।
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फिर आश्रम aa कर सो जाता था।अब मेरी लाइफ का एक ही मकसद था। में अब किसी भी तरह से अपनी कोसल्या से मिलूंगा ।
अब देखते ही देखते दिल्ली में 4साल निकल चुके थे कोसल्या की राह देखते देखते इतना ज्यादा समय निकल गया था की अब कोसल्या को थोड़ा बहुत भूलने लगा था। मेरी उम्मीद अब बिल्कुल भी खत्म हो चुकी थी।
ऐसा भी नही था की में उसे ढूंढ नही रहा था ।
मेरे छुट्टी वाले दिन में उसी की तलास करता था।
उसी साल में मेरे एक करीबी दोस्त की शादी थी । फिर मैने कुछ दिनों के लिए छुट्टी लेकर वापिस मेघालय जाने लग।
19 सितंबर2017 मेघालय में मेरे welcom जोर दार बारिश के साथ हुआ ।
सच कहूं तो में इस रूहानी मौसम को में बहुत मिस करता था।
में मेघालय के उसी बस स्टाप पर बारिश रुकने का इंतजार करने लगा जहा मेने कोसल्या पहली बार देखा था।
मेरे पास नही छाता था नही रेनकॉर्ट और मेरे पास समान भी बहोत ज्याद था।में भीगना भी नही चाहता था और मौसम का भी लुफ्त उठाना चाहता था।इसी लिए मेने अपने समान को एक कोने में रख कर जैस ही थोड़ा आगे बढ़ा ही था।
की पीछे से एक आवाज आई । इसी लिए मुझे दिल्ली पसंद है। यह तो हमेशा बारिश ही होती रहती है।
हैं, ये वही आवाज ही मानो मेरे मन में एक बिजली सी दौड़ गई हो । मेने तुरंत पलट के देखा तो कोसल्या ही थी।पर इस बार कुछ अलग था । उसके हाथो में चूड़ियां थी । मांग में सिंदूर और गोद एक बच्चा था।
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उसने मुझे जैसे देखा तो बोल पड़ी कुलदीप कैसे हो तुम सालो बाद दिखाई दे रहे हों।
में दिल्ली में रहती हूं अब मेरा ससुराल वही है ,
वहा कभी आना तो जरूर मिलना ।
इतना बोलने के बाद अपने पति का हाथ पकड़ कर आगे चल पड़ी।
और में उसे जाते हुए देखता ही रह गया ।
Nov2020
में फिर कभी वापिस दिल्ली नही गया और नही कोसल्या से दुबारा मुलाकात हुई ।
शायद वो मेरे नसीब में कभी थी ही नहीं। पर आज भी जब बारिश होती है , कोसल्या की बहुत याद आती हैं।
ये बारिश भी अपनी एक अलग ही कहानी है।
यह इश्क का अपना एक अलग ही जुनून है।
और तुम तुम हो,।
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The end
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